मोतिहारी।
होली की लोक भावन गीत अब क्षेत्र से लुप्त नजर आता दिख रहा।जिसके बदले फुहर गाने का बोलबाला दिख रहा है। जहां भोजपुरी अश्लील गाने धड़ले से बजाये जा रहे है। होली खेले रघुवीरा अवध में हो होली खेले रघुवीरा…..होलिया में उड़े रे गुलाब…….आदि गाने सुनने की लिए लोग तरस रहे है। इस आधुनिकतम दौर में पुरानी परंपरा मिट सी रही है। व्यस्तता भरी जिंदगी व आधुनिकता के इस युग में लोग अपनी परंपरा व संस्कृति भूलते जा रहे हैं। अब होली का मतलब सिर्फ रंग लगाने भर से रह गया है। फाल्गुन में होली गायन की परंपरा विलुप्त होती जा रही है। होली के लोकभावन गाना को अब अश्लीलता से परिपूर्ण बना दिया गया है। इसका समाज पर कुप्रभाव पड़ रहा है। जहां देखो वहां फुहर गाने बजाए जा रहे है और लोग उसपर थिरक रहे है। युवाओं की टोली में अधिकांशत होली की फुहर गाने हीं इस्तेमाल हो रहे है। जिन्हें तनिक भी अपनी परंपरा व संस्कृति का ख्याल नहीं है।
कुछ गांवों में आज भी बड़े-बुजुर्ग मृत प्राय हो चुकी इस परंपरा को जीवित रखने की जद्दोजहद कर रहे हैं। कहा जाता है कि फाल्गुन मास आरंभ होते ही आम के मंजरों की महक फिजाओं में तैरने लगती है। लोग होली के जश्न में डूब जाते थे। लेकिन अब होली के माहौल में कुछ कमियां खलती नजर आ रही है। पहले जहां ग्रामीण इलाकों में वसंतपंचमी से ही ढोल-डोफ के साथ होली के पारंपरिक गीत गूंजते रहते थे वहीं अब गांवों की यह समृद्ध विरासत लुप्त नजर आता दिख रहा है। एक समय था जब फाल्गुन शुरू होते ही टोलियां बनाकर लोग होली के मनभावन गीत गाते थे और सुननेवाले भी होलीमय हो जाते थे। शाम से शुरू होने वाली ग्रामीणों ने यह होली गीत देर रात चलती थी। गीतों के माध्यम से तरह-तरह के शब्द बना एक दूसरे पर मजाक के लिये छींटाकशी की जाती थी। जिस गीत-संगीत से गांव के ग्रामीणों में आपसी प्रेम और एकता बना रहता था। लेकिन अब तो गांव से शहर तक फूहड़ गीत इस पर्व की पहचान बनते जा रहे हैं। अब लोग शोक से होली की फुहर गाने सुनने और दुसरे को सुनाने से परहेज नहीं कर रहे है। जो कि तेज आवाज के साथ शर्म हया को धोकर ऐसा करने से बाज नहीं आ रहे है। अधिकतर मोटर वाहनों पर तो तेज सांउड के साथ बड़े शान से लोग होली की अश्लील और फुहर गाने बजा रहे है। जिससे नाते रिश्ते भी शर्माती नजर आ रही है।
इस संबंध में स्थानीय शिक्षाविद डा. पवन कुमार का कहना है कि पहले के बुजुर्ग के द्वारा चौपालों पर बैठकर जो होली गीत गाये जाते थे। वह मनोरंजन के साथ-साथ ज्ञान वर्द्धक भी होती थी। पहले के गाने में अपनत्व व संस्कृति विरासत झलकता था।लेकिन अब वह दिन गया शर्म हया को तकाक पर रख लोग अश्लीलता परोस रहे है। ऐसे में इस पर रोक लगनी चाहिए। जन जागरण मंच के सचिव मधुरेन कुमार का कहना है कि अब होली और ढोल डोफ की राग अब सुनने के लिए कान तरस जा रहे हैं। उसके बदले डीजे पर अश्लील गाने पर लोग थिरकते नजर आ रहे है। जो सभ्य समाज के लिए घातक है। चैंबर्स ऑफ कॉमर्स के अध्यक्ष अशोक कुमार गुप्ता ने आज बज रहे बिना अर्थ होली गीतों पर प्रहार करते हुए कहा कि ऐसे गीतों और गायकों पर प्रशासनिक कार्रवाई होनी चाहिए। क्योंकि ए भोजपुरी के नाम पर इस संस्कृति को दूषित कर रहे हैं। समाजिक कार्यकर्ता जीतेन्द्र तिवारी ने कहा कि हमें पुरानी सभ्यता व संस्कृति की विरासत को बचाने की जरूरी है। ऐसे में इसके लिए युवाओं को आगे आना होगा।